Wednesday 3 May 2017

मस्तिष्क के ट्यूमर का सर्जिकल प्रबंधन

मस्तिष्क की सर्जरी जब की जाती है तब नेविगेशन सिस्टम डॉक्टरों के लिए मस्तिष्क की संरचनाओं तक पहुंच संभव बनाता है, ताकि आसपास के उतकों को कम से कम नुकसान पहुंचे। इस सिस्टम की सहायता से डॉक्टर स्कैल्प, खोपड़ी और मस्तिष्क के अंदर आसानी से देख सकते हैं, जिससे गहराई में स्थित ट्युमर तक पहुंचना संभव होता है। इससे डॉक्टर सफलतापूर्वक पूरे ट्युमर को निकाल लेते हैं और आसपास के स्वस्थ्य उतकों को नुकसान नहीं पहुंचता है।  


जीपीएस तकनीक जिसे हम रोज इस्तेमाल करते हैं, एक क्रांतिकारी तकनीक साबित हो सकती है और यह मस्तिष्क की शल्यक्रिया में भी क्रांतिकारी बदलाव कर रही है। 
34 साल के सलाम सिरदर्द और कभी-कभार मिर्गी के दौरों की शिकायत लेकर अस्पताल आए। इसके कुछ समय बाद ही उन्हें सही तरीके से शब्दों का उच्चारण करने में और समझने में भी कठिनाई होने लगी और उन्हें अपना ध्यान केंद्रित करने में भी परेशानी आने लगी। सलाम की एमआरआई जांच में सामने आया कि उनके मस्तिष्क के आगे के बाएं भाग में बोलने वाले हिस्से यानी ब्रोकाज एरिया को एक बड़ा ट्यूमर दबा रहा था। सलाम कई डाॅक्टरों के पास गए और उन्होंने कहा गया कि सर्जरी की जा सकती है, लेकिन सर्जरी के बाद बोलने में परेशानी आने का पूरा खतरा है। इसके अलावा खोपड़ी का एक बड़ा हिस्सा खोलना पड़ता, क्योंकि ट्यूमर काफी बड़ा था और इसकी गोलाई करीब छह सेंटीमीटर थी और इससे सलाम  की समस्या लगातार बढ़ती जा रही थी, इसलिए उसे सर्जरी के लिए कहा गया। 

इसलिए डाॅक्टर नेन्यूरोनेविगेशन तकनीकका इस्तेमाल करने का निर्णय किया। इसमें खर्च उतना ही आता है, जितना आम न्यूरो सर्जरी में होता है। इसके लिए सर्जरी करने से पहले उसका विशेष एमआरआई अध्ययन किया गया। ट्यूमर हटने के बाद मरीज में काफी तेजी से सुधार हुआ। सर्जरी के कुछ ही देर बाद उसे होश गया और अपने परिजनों से बात करने लगा। आज सलाम  बिल्कुल स्वस्थ है और सामान्य जीवन जी रहे हैं।
जीपीएस तकनीक एेसे काम करती है: यह तकनीक सर्जरी में जीपीएस की तरह ही काम करती है। एक विशेष वर्कस्टेशन में जब एमआरआई से प्राप्त सूचनाएं डाल दी जाती हैं तो इसका सिस्टम नाक और भौंहों जैसे बाहरी चिह्न एमआरआई इमेज और आॅपरेटिंग कक्ष में मौजूद मरीज के जरिए पहचानना शुरू कर देता है तथा डेटा के दो सेट आपस में मिलाता है। इसके बाद रेफेरेन्स पाॅइंट्स और आॅप्टिकल डिटेक्टर जीपीएस त्रिकोणीय सिद्धांत पर काम करते है। इससे डाॅक्टर को एक पाॅइंटर की सहायता से यह पता लगाने में सहायता मिलती है कि एक निश्चित समय पर यह कहां काम कर रहा है। इससे सर्जन को पूरा सिर साफ करने के बजाए बिल्कुल सही जगह कट लगाने में सहायता मिलती है और वे सर्जरी के दौरान उसी स्थान पर ध्यान केन्द्रित कर पाते है। इसे न्यूरोनेविगेशन कहा जाता है। 

मस्तिष्क के ट्यूमर के सर्जिकल प्रबंधन में न्यूरोनेविगेशन एक सर्वव्यापक उपकरण बन गया है। ट्यूमर को हटाने जैसे आॅपरेशन करते समय इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाए तो डाॅक्टर कम से कम चीरफाड़ करते हुए अधिक बेहतर ढंग से सर्जरी कर सकते हैं और बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। 

जीपीएस तकनीक के फायदे: यह तकनीक मस्तिष्क के अंदर जीपीएस नेविगेशन की तरह काम करती है और इससे ट्यूमर तक सही ढंग से पहुंचा जा सकता है। इस तकनीक में सिर्फ ट्यूमर के बिल्कुल ऊपर एक छेद करना होता है। इससे सर्जरी के बाद होने वाली विकृतियों से बचा जा सकता है। इसके अलावा स्पेशल एमआरआई के जरिए से बोलने और समझने वाले के ब्रेन के उस भाग को मार्क कर निश्चित किया जाता है कि आॅपरेशन के दौरान उसके भीतर कोई क्षति हो सके जिससे कि मरीज को बाद में बोलने और समझने की दिक्कत का सामना करना पड़े।

मरीज को आॅपरेशन के दो तीन दिन बाद ही छुट्‌टी दे दी जाती है और वह बिल्कुल सामान्य जीवन जी सकता है। इस तकनीक से हुई सर्जरी के बाद सिर में छेद का कोई दिखने वाला निशान भी नहीं रहता है और सर्जरी के बाद किसी तरह के सिरदर्द की भी शिकायत नहीं रहती और मरीज की बोली पहले की तरह सामान्य हो जाती है, जिससे मरीज का आत्मविश्वास नहीं खोता। 


न्यूरो सर्जरी हमेशा से एक जटिल विधा है लेकिन, तेजी से कदम जमा रही आधुनिक तकनीक ने इसे आसान कर दिया है। जीपीएस तकनीक हम आए दिन इस्तेमाल करते हैं पर अब इसका इस्तेमाल सर्जरी में नेविगेशन के लिए हो रहा है। इससे न्यूरो सर्जरी भी आसान हो गई है और इलाज भी सटीक हो रहा है। 

(डॉ. अमित जैन 
  न्यूरोसर्जन  , बालाजी हॉस्पिटल टिकरापारा )


(बालाजी हॉस्पिटल टिकरापारा  में इलाज के लिये संपर्क करें - 77475156 ,769401615 ,89995519 )

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