Thursday 11 May 2017

घुटने के दर्द के लिए सावधानी जरुरी है

घुटनों के अंदरूनी या मध्य भाग में दर्द छोटी मोटी चोंटों या आर्थराईटीज के कारण हो सकता है| लेकिन घुटनों के पीछे का दर्द उस जगह द्रव संचय होने से होता है इसे बेकर्स सिस्ट कहते हैं| सीढ़ियों से नीचे उतरते वक्त अगर घुटनों में दर्द होता है तो इसे नी केप समस्या जाननी चाहिए | यह लक्षण कोंट्रोमलेशिया का भी हो सकता है| सुबह के वक्त उठने पर अगर आपके घुटनों में दर्द होता है तो इसे आर्थराई टीज की शुरू आत समझनी चाहिए\ चलने फिरने से यह दर्द धीरे-धीरे कम हो जाता है| बिना किसी चोंट या जख्म के अगर घुटनों में सूजन दिखे तो यह ओस्टियो आर्थराईटीज,गाऊट अथवा जोड़ों का संक्रमण की वजह से होता है|


  • घुटनों के आर्थराईटिस को कहते है ओस्टियोआर्थराईटिस।
  • 50 वर्ष की आयु के बाद होने की संभावना ज्यादा।
  • कोर्टीसोन इंजेक्शन ग्लुकोसैमाइन असरदार औषधि।
  • घुटनों का प्रत्यारोपण करना इसका सबसे अच्छा इलाज।


ओस्टियो आर्थराईटिस एक आम प्रकार का घुटनों का आर्थराईटिस होता है और इसे जोड़ों का अपकर्षक रोग भी कहा जाता है। घुटनों का संधिशोथ चबनी हड्डी की क्रमिक घिसाई के कारण होता है। घुटनों का संधिशोथ आम तौर से 50 वर्षों से अधिक आयु के रोगियों को अपना शिकार बनता है। और यह रोग उनमें अधिक पाया जाता  है जिनका वज़न आवश्यकता से अधिक होता है। यह रोग अनुवांशिक भी होता है, मतलब कि पीढ़ी दर पीढ़ी जारी रहता है। घुटनों के संधिशोथ के अन्य कारण हैं, घुटने में चोट, अस्थिबंध को हानि, और जोड़ के आसपास की हड्डी का टूटना।


घुटनों के संधिशोथ के लक्षण :

घुटनों के संधिशोथ के लक्षण संधिशोथ की अवस्था की बदतरी के साथ उजागर होते जाते हैं। लेकिन मज़े की बात यह है कि  लक्षण समय के साथ बढ़ते नहीं हैं। रोगी अक्सर अच्छे और बुरे समय के बारे में बात करते हैं, या मौसम के साथ लक्षणों में बदलाव महसूस करते हैं। घुटनों के आर्थराइटिस के आम लक्षण इस प्रकार हैं।
    गतिविधि के कारण पीड़ा।
    घुटनों में अकड़न।
    जोड़ों में सूजन।
    "जोड़ जवाब दे जाएगा" का एहसास।
    जोड़ों की विकृति।

घुटनों के आर्थराइटिस के उपचार की शुरुआत शारीरिक जांच और एक्स रे से करनी चाहिए और अगर आवश्यकता पड़े तो ऑपरेशन भी किया जा सकता है। हर रोगी पर एक ही तरह का इलाज कारगर नहीं होता, और अपने लिए सही इलाज की सलाह अपने चिकित्सक से लेना ज़रूरी होता है।
घुटनों के आर्थ राइटिस के उपचार के लिए कुछ विकल्प नीचे दिए गए हैं।

वज़न कम करना

घुटनों के आर्थराइटिस के उपचार के लिए कदाचित यह एक अति महत्वपूर्ण पर कम प्रयोग में लाया जानेवाला एक अचूक तरीका है। जोड़ों को जितना कम वज़न उठाना पड़े, उतनी ही कोई कार्य करते समय जोड़ों में पीड़ा कम होती है।अपनी कुछ गतिविधियाँ कम करने या उनपर नियंत्रण करने से, और व्यायाम के नए तरीकों के बारे में जानने से काफी सहायता मिल सकती है।एक छड़ी या एक ही बैसाखी का प्रयोग करने से भी काफी लाभ मिल सकता है।जलन रोधी औषधियां के सेवन से भी जोड़ों की पीड़ा काफी हद तक कम हो जाती है।
कोर्टीसोन इंजेक्शन को लगवाने से जोड़ों की जलन और पीड़ा कम हो जाती है। घुटनों के आर्थराइटिस के उपचार के लिए ग्लुकोसैमाइन सुरक्षित और असरदार औषधि मानी जाती है। घुटनों की आरथरोस्कोपी कुछ ख़ास लक्षणों में ही कारगर साबित होती है। घुटनों की ओस्टियोटोमी सीमित रूप से आर्थराइटिस से ग्रसित कम उम्र के रोगियों पर ही असर करता है। पूर्ण रूप से घुटनों के बदलाव की सर्जरी की प्रक्रिया से चबनी हड्डी को निकालकर धातु और प्लास्टिक की चबनी हड्डी के आकार की वस्तु डाली जाती है।


आंशिक रूप से घुटने के बदलाव की सर्जरी की प्रक्रिया से घुटने के एक ही भाग को बदला जाता है। यह सीमित रूप से घुटनों के आर्थराइटिस से ग्रसित रोगियों के लिए सर्जरी का एक अच्छा विकल्प है।


(डॉ मनोज सोनी, ऑर्थोपेडिक एवं ट्रांसप्लांट सर्जन, बालाजी हॉस्पिटल टिकरापारा रायपुर )



आयुर्वेदिक औषधि


 आयुर्वेदिक औषधि के बारे में विशेषज्ञ  डॉ संगीता कौशिक ने नए रिसर्च के बारे में बताया।  इस  औषधि को शल्लकी के नाम से सदियों से आयुर्वेद के चिकित्सक जोड़ों के दर्द की चिकित्सा में प्रयोग कराते आ रहे हैं I बोस्वेलीया सीराटा और अंग्रेजी में “Indian Frankincense” नाम से प्रचलित यह वनस्पति अंग्रेजी दवाओं मैं पेन-किलर्स का एक बेहतर विकल्प हैI  इस वनस्पति के अच्छे प्रभाव संधिवात (ओस्टीयोआर्थ्रराईटीस) एवं रयूमेटाइडआर्थराईटीस जैसे घुटनों के सूजन की अनेक अवस्थाओं में कारगर साबित हुए हैंI राजस्थान,मध्यप्रदेश एवं आँध्रप्रदेश में “शलाई के नाम से जाना जानेवाला यह पौधा अपने सक्रिय तत्व बोस्वेलिक एसिड के कारण वैज्ञानिकों की नज़रों में आया है I इसके प्रभाव प्राथमिक एवं सेकेंडरी स्तर के ब्रेन ट्यूमर में भी प्रभावी पाए गए हैं I 

आस्टीयोआर्थरायटीस पर नागपुर के इंदिरागांधी मेडिकल कालेज में की गयी एक रिसर्च में भी इसके दर्द निवारक प्रभाव देखे गए हैंI  यूनिवर्सीटी आफ केलीफोर्नीया के वैज्ञानिक डॉ.शिवारायचौधरी ने इस वनस्पति के दर्द निवारक प्रभाव पर अध्ययन किया हैI  सत्तर ऐसे लोगों को जिन्हें आस्टीयो-आर्थराईटीस (घुटनों के दर्द एवं सूजन की एक स्थिति ) थी ,को इस वनस्पति के सक्रिय तत्व से युक्त केप्सूल का लो-डोज में तथा कुछ को हाई-डोज में सेवन कराया गया तथा शेष को डम्मी केप्सूल दिया गया I परिणाम चौकाने वाले थे,जिन लोगों ने शल्लकी केप्सूल का सात दिनों तक सेवन किया उनके जोड़ों की गति,दर्द एवं सूजन में  डम्मी समूह की अपेक्षा  लाभ देखा गया I डॉ.रायचौधरी का मानना है कि  शल्लकी में पाया जानेवाला सक्रिय तत्व जिसे उन्होंने ए.के.बी.ए.नाम दिया गया ,आस्टीयोआर्थ्रायटीस से जूझ रहे रोगियों के लिए एक अच्छा विकल्प है I ब्रिटिश विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर फिलिप कोनेघन भी इस बात को मानते है कि आस्टीयोआर्थ्रायटीस के रोगियों के लिए एक सुरक्षित दर्द निवारक औषधि की जरूरत है ,क्यूंकि वर्त्तमान में उपलब्ध दर्द एवं सूजन सहित मांसपेशियों  को रिलेक्स करने वाली औषधियां दुष्प्रभाव के कारण भी जानी जा रही हैं I यह बात बी.बी.सी .ने 1  अगस्त 2008 को अपनी एक रिपोर्ट में भी प्रकाशित की है I अभी हाल ही में जर्नल आफ रयूमेटोलोजी 2011 में प्रकाशित एक शोधपत्र में भी इसकी उपयोगिता को जोड़ों से दर्द के निवारक के रूप में पाया जाना प्रकाशित हुआ है I अभी इस वनस्पति पर और भी अधिक शोध किये जा रहे हैं I वैज्ञानिकों ने इसे कोलाईटीस,ब्रोंकाईटीस सहित अनेक सूजन प्रधान  व्याधियों में प्रभावी पाया है I बस ऐसी ही कई रिसर्च आनेवाले समय में आयुर्वेद के खजानों में उपलब्ध अनेक औषधीय वनस्पतियों की उपयोगिता को आधुनिक कसौटी पर खरा साबित करेंगी I


(बालाजी हॉस्पिटल टिकरापारा  में इलाज के लिये संपर्क करें - 77475156 ,769401615 ,89995519 )






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